“आई लव यू” कहना क्या यौन अपराध है? छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले ने खड़ा किया बड़ा सवाल
यह फैसला न सिर्फ कानूनी जगत बल्कि आम समाज के लिए भी बेहद अहम बन गया

रायपुर/बिलासपुर | जनदखल
क्या किसी नाबालिग लड़की को “आई लव यू” कहना यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है? क्या सिर्फ इतना कह देना किसी युवक को पॉक्सो एक्ट के तहत सजा दिला सकता है? छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने इन सवालों के जवाब स्पष्ट किए हैं—और यह फैसला न सिर्फ कानूनी जगत बल्कि आम समाज के लिए भी बेहद अहम बन गया है।
क्या था पूरा मामला?
14 अक्टूबर 2019 का दिन था। बिलासपुर में 15 वर्षीय एक छात्रा स्कूल से घर लौट रही थी। तभी रास्ते में एक युवक ने उसे रोका और कहा—“आई लव यू”। छात्रा के अनुसार वह युवक पहले से भी उसे परेशान करता था। यह बात उसने स्कूल में शिक्षकों को बताई, जिसके बाद युवक को बुलाकर समझाया गया।
लेकिन मामला यहीं नहीं रुका। छात्रा ने थाने में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए युवक के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज कर दिया—IPC की धारा 354D (पीछा करना), धारा 509 (महिला की लज्जा भंग), POCSO Act की धारा 8 (यौन उत्पीड़न) और SC/ST एक्ट की धारा 3(2)(va) भी शामिल थी।
ट्रायल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक का सफर
इस मामले की सुनवाई ट्रायल कोर्ट में हुई, जहां सबूतों और गवाहों की जांच के बाद युवक को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष पर्याप्त सबूत नहीं दे सका कि युवक की मंशा वास्तव में यौन उत्पीड़न की थी।
राज्य सरकार इस फैसले से असंतुष्ट थी, और मामला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट पहुंचा। लेकिन यहां भी सरकार को राहत नहीं मिली।
हाईकोर्ट का फैसला: “यौन मंशा न हो तो अपराध नहीं”
जस्टिस संजय एस अग्रवाल की एकलपीठ ने यह स्पष्ट किया कि—
“सिर्फ ‘आई लव यू’ कहने मात्र से यह साबित नहीं होता कि युवक की मंशा यौन उत्पीड़न करने की थी।”
हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी कृत्य को यौन अपराध के दायरे में लाने के लिए जरूरी है कि उसमें यौन मंशा स्पष्ट हो। जब तक ऐसा न हो, महज एक प्रेम प्रस्ताव को अपराध नहीं माना जा सकता।
इस फैसले के निहितार्थ क्या हैं?
यह फैसला कई दृष्टिकोणों से बेहद महत्वपूर्ण है:
यह पॉक्सो एक्ट की व्याख्या को नया आयाम देता है। अब किसी भी मामले में सिर्फ शब्दों या कृत्यों को देखकर नहीं, बल्कि उनकी मंशा का विश्लेषण भी जरूरी होगा।
यह तय करता है कि प्रेम प्रस्ताव और यौन उत्पीड़न के बीच एक स्पष्ट रेखा खींचनी होगी।
यह निर्णय अदालतों के सामने पेश होने वाले सैकड़ों मामलों में नजीर बन सकता है।
विवाद भी उतना ही संभावित
हालांकि, यह फैसला विवादों से भी अछूता नहीं है। कुछ विशेषज्ञ इसे नाबालिगों की सुरक्षा को कमजोर करने वाला मान सकते हैं, जबकि कुछ इसे कानूनी विवेक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा का फैसला बता रहे हैं।
जनदखल का मानना है कि इस तरह के मामलों में संवेदनशीलता और संतुलन दोनों जरूरी हैं। बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है, लेकिन किसी के जीवन को बिना ठोस मंशा के अपराधी करार देना भी उतना ही घातक हो सकता है।