बस्तर नहीं अब ‘दंडकारण्य’ चाहिए, डॉ. सौरभ निर्वाणी की अगुवाई में धर्म स्तंभ काउंसिल ने उठाई ऐतिहासिक मांग
संतों और अखाड़ों ने दी एकजुट आवाज — लौटाओ बस्तर की आध्यात्मिक पहचान

छत्तीसगढ़ की आध्यात्मिक पहचान को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव सामने आया है। धर्म स्तंभ काउंसिल ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को ज्ञापन सौंपते हुए बस्तर का नाम बदलकर ‘दंडकारण्य’ रखने की मांग की है।
इस प्रस्ताव की अगुवाई धर्म स्तंभ काउंसिल के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. सौरभ निर्वाणी ने की। उन्होंने कहा कि यह केवल नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और धार्मिक अस्मिता की पुनर्स्थापना है।
डॉ. निर्वाणी ने कहा,
“रामायण काल में यह क्षेत्र दंडकारण्य कहलाता था। प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने यहीं अपना वनवास काल बिताया था। अंग्रेजों ने इसे प्रशासनिक कारणों से ‘बस्तर’ नाम दिया, जो हमारी परंपरा और गौरव से कटा हुआ है। अब समय आ गया है कि बस्तर को उसका मूल, आध्यात्मिक नाम लौटाया जाए।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार ने 1947 के बाद यहां ‘दंडकारण्य विकास प्राधिकरण’ की स्थापना कर इस ऐतिहासिक महत्व को मान्यता दी थी।
संतों और अखाड़ों का समर्थन
इस मांग को देशभर के प्रमुख अखाड़ों जैसे निरंजनी अखाड़ा, अखिल भारतीय संत परिषद, सनातन धर्म संघ सहित कई संतों और महंतों का समर्थन प्राप्त है।
डॉ. सौरभ निर्वाणी ने कहा कि यह मांग केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पुनर्रचना का आरंभ है। बस्तर की भूमि तपोभूमि रही है और इसे दंडकारण्य के नाम से पुकारना हमारी ऐतिहासिक जिम्मेदारी है।
क्या है दंडकारण्य का महत्व?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यह वही स्थान है जहां श्रीराम ने वनवास का अधिकांश समय बिताया। रामायण, महाभारत और पुराणों में दंडकारण्य का उल्लेख मिलता है। यही नहीं, स्वतंत्रता के बाद सरकार ने भी इसे मान्यता दी।