सावन में अंडा! स्कूल में बच्चों को परोसा गया अंडा, भड़के हिंदू संगठन, प्रशासन में मचा हड़कंप
स्कूल के एक शिक्षक ने अपनी मर्जी से मीनू बदल दिया और मिड-डे मील में अंडा परोसने का फैसला ले लिया

जनदखल /रायगढ़ – वाड्रफनगर /… जहां पूरा देश सावन के पावन महीने में भगवान शिव की भक्ति में लीन है, वहीं रायगढ़ जिले के वाड्रफनगर के चर्चरी माध्यमिक शाला से एक धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाला मामला सामने आया है। सरकारी स्कूल में बच्चों को मिड-डे मील में अंडा परोस दिया गया, जिससे हिंदू संगठनों में आक्रोश फैल गया।
ये वही सावन है जिसमें शिवभक्त मांस-मदिरा से दूर रहते हैं, व्रत रखते हैं और सात्विकता का पालन करते हैं। ऐसे में स्कूल में बच्चों को अंडा परोसना न सिर्फ परंपरा का उल्लंघन है, बल्कि यह एक समुदाय की आस्था से खुला मज़ाक है।
बताया गया कि स्कूल के एक शिक्षक ने अपनी मर्जी से मीनू बदल दिया और मिड-डे मील में अंडा परोसने का फैसला ले लिया — बिना किसी अधिकृत अनुमति या जनसहमति के।
हिंदू संगठनों ने इस पर तीखा विरोध जताया है और दोषी शिक्षक पर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। फिलहाल प्रशासन जांच की बात कर रहा है, लेकिन जनदखल का सवाल है – क्या सिर्फ जांच से संतोष कर लिया जाएगा या जवाबदेही भी तय होगी?
इसी चर्चरी क्षेत्र के प्राथमिक शाला की हालत और भी शर्मनाक है। बच्चों को सिर्फ चावल या सिर्फ दाल परोसी जा रही है।
जहां सरकार हर दिन पोषण युक्त भोजन देने का दावा करती है, वहीं ज़मीनी हकीकत है –
“किसी दिन सिर्फ चावल, किसी दिन सिर्फ दाल… सब्ज़ी तो हफ्तों से नहीं देखी!”
स्वयं सहायता समूह की लापरवाही की बात कहकर शिक्षक अपना पल्ला झाड़ रहे हैं, और विभाग सिर्फ “निगरानी व्यवस्था” की दुहाई दे रहा है।
लेकिन सवाल यह है कि:
बच्चों के निवाले से हो रही ये लूट आखिर रोक कौन रहा है?
पोषण के नाम पर ठगी कब तक चलेगी?
जनदखल के सवाल तीखे हैं, जवाब भी ठोस चाहिए–
सावन जैसे पवित्र महीने में अंडा परोसने का आदेश किसने दिया?
क्या मिड डे मील का मीनू शिक्षक अपनी मर्जी से बदल सकता है?
बच्चों के स्वास्थ्य से हो रहे खिलवाड़ पर कौन जिम्मेदार ठहराया जाएगा?
शिक्षा और पोषण की दोहरी जिम्मेदारी, अब सवालों के घेरे में है।धार्मिक आस्था, बच्चों का स्वास्थ्य और सरकारी योजनाओं की साख — तीनों एक ही खबर में घायल हैं।