“भेड़ों के नाम पर 700 करोड़ की ‘लूट’, तेलंगाना में भेड़ वितरण योजना बनी ‘घोटाले का चरागाह'”
ईडी ने इस मामले में पीएमएलए के तहत बुधवार को हैदराबाद में 8 ठिकानों पर छापेमारी की

हैदराबाद /जनदखल… भेड़ों के नाम पर एक ऐसा घोटाला हुआ है, जिसने सिस्टम की ‘शक्ल’ ही नहीं, उसकी ‘नीयत’ पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। तेलंगाना की बहुचर्चित ‘भेड़ वितरण योजना’ (SRDS) अब भेड़ों की खरीद नहीं, बल्कि सरकारी पैसे की बंटवारे की स्कीम के तौर पर सामने आ रही है।
ईडी ने इस मामले में पीएमएलए के तहत बुधवार को हैदराबाद में 8 ठिकानों पर छापेमारी की है।
और सबसे चौंकाने वाला नाम सामने आया है—पूर्व बीआरएस मंत्री तलसानी श्रीनिवास यादव के OSD, जी. कल्याण का, जिन्हें एसीबी ने एफआईआर में नामजद किया है।
क्या था भेड़ वितरण योजना?
2017 में तेलंगाना सरकार ने घोषणा की थी—चरवाहा परिवारों को 75% सब्सिडी पर 20 मादा और 1 नर भेड़ दी जाएगी।
पहले चरण में 1.28 करोड़ से ज्यादा भेड़ें बांटी गईं। पर हकीकत ये थी।
नकली बिल,
फर्जी ट्रांसपोर्ट पेपर,
बेनामी बैंक खाते,
और मर चुके या अस्तित्वहीन ‘लाभार्थी’
कितने का घोटाला?
एसीबी का अनुमान: ₹700 करोड़ से ज्यादा
कैग की ऑडिट रिपोर्ट (सिर्फ 7 जिलों पर आधारित): ₹253.93 करोड़ का नुकसान
33 जिलों पर अनुपात निकालें तो कुल घोटाला ₹1000 करोड़ पार कर सकता है।
कैसे हुआ खेल?
एक ही RFID टैग कई बार इस्तेमाल हुए।
मृतकों के नाम पर भेड़ें बांट दी गईं।
लाभार्थियों का कोई पुख्ता रिकॉर्ड नहीं।
फर्जी रसीदों और ट्रांसपोर्ट दस्तावेजों से कागज़ी खानापूर्ति की गई।
अब क्या हो रहा है?
ईडी ने पशुपालन विभाग और भेड़-बकरी निगम से सभी दस्तावेज अपने कब्जे में ले लिए हैं।
अब जांच बैंकिंग लेन-देन, बिचौलियों, और राजनीतिक पहुंच वाले खिलाड़ियों पर केंद्रित हो गई है।
जानकार कहते हैं यह सिर्फ एक घोटाला नहीं, बल्कि सरकारी योजनाओं में घुसी ‘भेड़िया मानसिकता’ का पर्दाफाश है।
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