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धर्मांतरण या राजनीतिक ड्रामा? दुर्ग से दिल्ली तक गूंजा ‘नन गिरफ्तारी’ मामला

मीडिया की तूफानी हेडलाइन्स ने पूरे मामले को एक "राष्ट्रीय बहस का केंद्र" बना दिया

जनदखल ब्यूरो/ दुर्ग/ रायपुर/केरल/ दिल्ली/ 25 जुलाई 2025 का दिन था और स्थान दुर्ग रेलवे स्टेशन। एक मामूली सी जानकारी ने पूरे देश को हिला दिया। दो मलयाली नन, एक युवक और तीन आदिवासी युवतियाँ – सब एक ट्रेन में थे, लेकिन बजरंग दल को ये दृश्य “संदेहास्पद” लगा। बस फिर क्या था – आरोपों की आंधी, राजनीतिक बयानबाज़ी की बारिश, और मीडिया की तूफानी हेडलाइन्स ने पूरे मामले को एक “राष्ट्रीय बहस का केंद्र” बना दिया।

क्या हुआ था असल में?
दुर्ग स्टेशन पर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को शक हुआ कि तीन आदिवासी लड़कियों को धर्मांतरण के इरादे से आगरा ले जाया जा रहा है। तुरंत हंगामा हुआ, जीआरपी पुलिस पहुंची, दोनों ननों और युवक को हिरासत में ले लिया गया। मामला दर्ज हुआ कर लिया गया और धाराएं लगाई गई मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण की आशंका की।

कानून या सियासत?
इस गिरफ्तारी ने पूरे देश की राजनीति को गर्मा दिया।

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इसे “धार्मिक भेदभाव” और “मानवाधिकारों का उल्लंघन” करार दिया।

राहुल गांधी, के. सी. वेणुगोपाल, वृंदा करात से लेकर फ्रांसिस जॉर्ज तक, सभी मैदान में उतर आए।

दिल्ली से लेकर दुर्ग जेल तक, “संविधान बचाओ, धर्म की आड़ में उत्पीड़न बंद करो” के नारे लगे।

छत्तीसगढ़ सरकार का रुख:
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने साफ कहा –

“कानून अपना काम कर रहा है। ये मामला धर्मांतरण और प्रलोभन का है। किसी को कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी।”

साथ ही, सरकार ने यह भी संकेत दिया कि “गैरकानूनी धर्मांतरण के खिलाफ कड़ा कानून” लाया जा रहा है।

बीजेपी में भी फूट की आहट?
सबसे चौंकाने वाला मोड़ तब आया, जब केरल बीजेपी के नेता ननों के समर्थन में खुलकर सामने आ गए।

राजीव चंद्रशेखर और अनूप एंटोनी ने छत्तीसगढ़ पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए और ननों की रिहाई की माँग की।

क्या यह BJP की दोहरी नीति है या फिर राजनीतिक मजबूरी?

फिलहाल, दोनों नन और युवक न्यायिक हिरासत में हैं, और जमानत पर कोई फैसला नहीं लिया गया है।
राज्य की जांच एजेंसियाँ सक्रिय हैं, लेकिन देशभर में धर्म, राजनीति और अधिकारों को लेकर बहस भी लगातार जारी है।

जानकार सवाल खड़े कर रहे हैं कि:
क्या सिर्फ शक के आधार पर गिरफ्तारी न्यायोचित है?
क्या यह धर्मांतरण का मामला है या सियासी नौटंकी?
क्या बजरंग दल को कानून हाथ में लेने का अधिकार है?
क्या सरकार और विपक्ष दोनों अपने-अपने वोट बैंक साध रहे हैं?

बहरहाल देश को धर्म नहीं, संवैधानिक विवेक चाहिए। इस संवेदनशील मामले में न्यायिक प्रक्रिया को ही अंतिम फैसला करने देना चाहिए ।

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